रामधारी सिंह दिनकर /Ramdhari singh dinkar
हेलो दोस्तों आपका मेरी वेबसाइट getyourway.online मे स्वागत है आप सभी रामधारी सिंह दिनकर जी को अवश्य जानते होंगे वे एक बहुत बड़े कवि थे उनका जन्म 23 सितम्बर 1908 को हुआ था उन्होंने हिन्दी मे कई रचनाये की जो आज हम सब किताबो मे पढ़ते है उन्हीं रचनाओं मे से उनकी एक रचना जो कि एक प्रेरणादायक कविता है " थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है " को पढ़ेगें |
आप इस कविता को अवश्य पढ़े और अपने दोस्तों आदि के साथ भी जरूर शेयर करे ये कविता आपको कभी हार ना मानने आगे बढ़ने और अपनी मंजिल प्राप्त करने के लिए अवश्य प्रेरणा देगी |
" थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है "
वह प्रदीप जो दिख रहा है झिलमिल दूर नहीं है,
थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है |
चिनगारी बन गई लहू की
बूँद गिरी जो पग से,
चमक रहे, पीछे मुड़ देखो
चरण चिह्न जगमग से |
शुरू हुई आराध्य-भूमि यह,
क्लांत नहीं रे राही
और नहीं तो पाँव लगे हैं
क्यों पड़ने डगमग से?
बाकी होश तभी तक, जब तक जलता तूर नहीं है
थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है |
अपनी हड्डी की मशाल से
हॄदय चीरते तम का,
सारी रात चले तुम दुख
झेलते कुलिश निर्मम का।
एक खेय है शेष किसी विधि
पार उसे कर जाओ
वह देखो, उस पार चमकता
है मन्दिर प्रियतम का
आकर इतना पास फिरे, वह सच्चा शूर नहीं है,
थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है |
दिशा दीप्त हो उठी प्राप्तकर
पुण्य-प्रकाश तुम्हारा,
लिखा जा चुका अनल-अक्षरों
में इतिहास तुम्हारा |
जिस मिट्टी ने लहू पिया
वह फूल खिलायेगी ही,
अम्बर पर घन बन छायेगा
ही उच्छवास तुम्हारा
और अधिक ले जाँच, देवता इतना क्रूर नहीं है
थककर बैठ गये क्या भाई ! मंजिल दूर नहीं है |
~ रामधारी सिंह दिनकर
तो आज के इस लेख में हमने कवि "रामधारी सिंह दिनकर" जी की कविता " थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है " को पढ़ा उम्मीद करता हूं आपको मेरा ये लेख जरूर पसन्द आया होगा आप अपनी प्रतिकिया हमे comment के माध्यम से दे तथा इसे share भी करे अगर आपका कोई सुझाव हैं तो वो भी यहाँ comment मे बताये मैं उसपे अमल करूंगा|🙏