हैलो दोस्तों आपका मेरी वेबसाइट getyourway.online मे स्वागत है आप सभी रवींद्र नाथ टैगोर जी को जरूर जानते होंगे इनका जन्म 7 मई सन् 1861 ईo को कोलकाता मे हुआ था | रवींद्र नाथ टैगोर एक बहुत बड़े कवि, साहित्यकार और दार्शनिक थे | इनको साहित्य मे नोबेल पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था | अपने देश भारत का राष्टृगान जन-गण-मन भी इन्हीं के द्वारा रचा गया है |
तो आज के इस लेख मे हम रवींद्रनाथ टैगोर जी की कुछ कविताएं रवींद्रनाथ टैगोर की कविता हिंदी में || rabindranath tagore poems in hindi को पढ़ेंगे और उससे कुछ सीख लेंगे |
रवींद्रनाथ टैगोर की कविता हिंदी में || rabindranath tagore poems in hindi
(1) हम होंगे कामयाब एक दिन
हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब एक दिन मन में है ये विश्वास, पूरा है विश्वास हम होंगे कामयाब एक दिन |
हम चलेंगे साथ-साथ, डाल के हाथों में हाथहम चलेंगे साथ-साथ एक दिन
मन में है ये विश्वास, पूरा है विश्वास
हम चलेंगे साथ-साथ एक दिन |
(2) प्रेम में प्राण में गान में गंध में
प्रेम में प्राण में गान में गंध में
आलोक और पुलक में हो रह प्लावित
निखिल द्युलोक एवं भूलोक में
तुम्हारा ये अमल निर्मल अमृत बरस रहा झर-झर |
दिक-दिगंत के टूट गए आज सारे ही बन्ध
मूर्तिमान हो उठा, ये जाग्रत आनंद
जीवन हुआ प्राणवान, अमृत में छक कर।
कल्याण रस सरवर में चेतना ये मेरी
शतदल सम खिल उठी परम हर्ष से
सारा मधु अपना उसके चरणॊं में रख कर।
नीरव आलोक में, जागा हृदयांगन में,
उदारमना उषा की उदित अरुण कांति में,
अलस पड़े कोंपल का आँचल ढला, सरक कर।
(3) चल तू अकेला
चल तू अकेला,
तेरा आह्वान सुन कर कोई ना आए, तो चल तू अकेला
चल अकेला, चल अकेला, चल तू अकेला
तेरा आह्वान सुन कर कोई ना आए, तो तू चल अकेला
जब सबके मुंह पे पाश
ओ ओरे ओ अभागी! सबके मुंह पे पाश,
हर कोई मुंह मोड़के बैठे, हर कोई डर जाएं
तब भी तू दिल खोलके, अरे! जोश में आकर
मनका गाना गूंज तू अकेला
जब हर कोई वापस जाएं
ओरे ओरे ओ अभागी! हर कोई वापस जाएं
कानन-कूचकी बेला पर सब ही कोने में छिप जाये |
(4) वन की चिड़िया
पिंजरे की चिड़िया थी सोने के पिंजरे में
वन की चिड़िया थी वन में
एक दिन हुआ दोनों का सामना
क्या था विधाता के मन में
वन की चिड़िया कहे सुन पिंजरे की चिड़िया रे
चल वन में उड़ें दोनों मिलकर
पिंजरे की चिड़िया कहे वन की चिड़िया रे
पिंजरे में रहना ही बड़ा सुखकर
वन की चिड़िया कहे ना
मैं पिंजरे में क़ैद रहूँ क्यों?
पिंजरे की चिड़िया कहे हाय
निकलूँ मैं कैसे ये पिंजरा तोड़कर
वन की चिड़िया गाए पिंजरे के बाहर बैठे
वन के सारे मनोहर गीत
पिंजरे की चिड़िया गाए रटाए हुए
दोहा और कविता के रीत
वन की चिड़िया कहे पिंजरे की चिड़िया से
गाओ तुम भी वन के कुछ गीत
पिंजरे की चिड़िया कहे सुन वन की चिड़िया रे
कुछ दोहे, कविता तुम भी लो सीख
वन की चिड़िया कहे ना
तेरे सिखाए ये गीत मैं ना गाऊँ
पिंजरे की चिड़िया कहे हाय!
मैं कैसे फिर वन के गीत गाऊँ
वन की चिड़िया कहे नभ का रंग है नीला
उड़ने में कहीं नहीं है बाधा
पिंजरे की चिड़िया कहे पिंजरा है सुरक्षित
यहाँ रहना है सुखकर ज़्यादा
वन की चिड़िया कहे अपने को खोल दो
बादल के बीच, फिर देखो
पिंजरे की चिड़िया कहे अपने को बाँधकर
कोने में बैठो, फिर देखो
वन की चिड़िया कहे ना
ऐसे मैं उड़ पाऊँ ना रे
पिंजरे की चिड़िया कहे हाय!
बैठूँ बादल में मैं फिर कहाँ रे!
ऐसे ही दोनों पाखी बातें करें रे अपने मन की
पास फिर भी ना आ पाए रे
पिंजरे के अन्दर से स्पर्श करे रे मुख से
नीरव आँखे सारी सब कुछ कहें रे
दोनों ही एक दूजे को समझ ना पाएँ रे
ना ख़ुद ही समझा पाएँ रे
दोनों अकेले ही पंख फड़फड़ाएँ
कातर कहे पास तो आओ रे
वन की चिड़िया कहे ना
पिंजरे का द्वार हो जाएगा रुद्ध
पिंजरे की चिड़िया कहे हाय!
मुझमे शक्ति नही है कि उडूँ मै ख़ुद |
(5) विपदाओं से रक्षा करो
विपदाओं से रक्षा करो यह न मेरी प्रार्थना,
यह करो विपदा में न हो भय |दुख से व्यथित मन को मेरे
भले न हो सांत्वना,
यह करो दुख पर मिले विजय |
मिल सके न यदि सहारा,
अपना बल न करे किनारा
क्षति ही क्षति मिले जगत् में
मिले केवल वंचना,
मन में जगत् में न लगे क्षय |
करो तुम्हीं त्राण मेरा
यह न मेरी प्रार्थना,
तरण शक्ति रहे अनामय।
भार भले कम न करो,
भले न दो सांत्वना,
यह करो ढो सकूँ भार-वय |
यह न मेरी प्रार्थना,
तरण शक्ति रहे अनामय।
भार भले कम न करो,
भले न दो सांत्वना,
यह करो ढो सकूँ भार-वय |
सिर नवाकर झेलूँगा सुख,
पहचानूँगा तुम्हारा मुख,
मगर दुख-निशा में सारा
जग करे जब वंचना,
यह करो तुममें न हो संशय |
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