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Kabir das/कबीर दास |
हेलो दोस्तों आपका मेरी वेबसाइट getyourway.online मे स्वागत है आप सभी ने मेरे पिछले लेख मे कबीर दास के 10 प्रमुख दोहो को पढ़ा और आज के इस लेख मे हम कबीर दास का जीवन परिचय/kabir das ka jivan parichay/kabir das biography in hindi को पढ़ेगें |
कबीर दास का जीवन परिचय || kabir das ka jivan parichay ||kabir das biography in hindi
कबीर दास के जन्म के सम्बन्ध मे कई सारे मतभेद है इनके जन्म, जन्म-स्थान, इनके माता पिता व इनके धर्म को लेकर बहुत सारे मतभेद है जो आज तक बने हुए है |
कबीर दास का जन्म :-
माना जाता है कि कबीर दास का जन्म 1440 ईo मे काशी (वाराणसी) में हुआ था वही कई इतिहासकारो का मानना है कि कबीर का जन्म 1398 ईo में मगहर मे हुआ था पर ज्यादातर इतिहासकार उनका जन्म काशी मे मानते है तथा कबीर की रचनाओं से भी ऐसा लगता है | इनके पालन- पोषण और जन्म देने वाली माँ को लेकर भी अलग अलग मत है | एक प्रचलित मत के अनुसार कबीर का जन्म एक विधवा ब्राह्मणी के घर हुआ था जिसे ऋषि रामानंद जी ने गलती से पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया था तो विधवा ब्राह्मणी ने संसार की लोक-लाज के कारण नवजात शिशु( कबीर) को लहरतारा ताल के पास छोड़ दिया था शायद यही वजह रही होगी कि कबीर सामाजिक परम्पराओं मे सुधार के लिए तत्पर रहे और इन परम्पराओं को अपने लेख के माध्यम से कोसते रहे | कबीर दास धार्मिक आडम्बरो के धुर-विरोधी थे वे मुर्ति-पुजा, उपवास आदि मे विश्वास नही रखते थे तथा वे धर्म के नाम पर होने वाली बुराईयो का भी विरोध करते थे |
वही एक दूसरे प्रचलित मत के अनुसार कबीर का पालन-पोषण नीरू और नीमा नामक जुलाहो ने किया नीरू को यह बच्चा लहरतारा ताल के किनारे मिला था | कबीर नीरू और नीमा के वास्तविक संतान थे या उन्होंने सिर्फ उनका लालन-पोषण किया इसके बारे में इतिहासकारों के अपने-अपने अलग मत है | वही इनके हिंदू और मुसलमान होने पर भी मतभेद है |
शिक्षा:-
कहाँ जाता है कि कबीर को बचपन से पढ़ाई-लिखाई एवं खेल-कूद मे कोई विशेष रुचि नही थी उनका परिवार भी अत्यन्त गरीब था इसलिए भी वे कबीर को किताबी शिक्षा नही दिला सके | कबीर दिन भर इधर-उधर घुमा करते और अपने दोहो को गाया करते थे और भोजन जुटाते थे | कबीर दास बस दोहे गाते थे उन दोहो को किताबों पर उनके शिष्यों ने उकेरा |
गुरु और गुरु-दीक्षा:-
कबीर रामानन्द जी को अपना गुरु मानते थे क्योंकि रामानन्द जी उस समय के बहुत ही विद्वान पंडित थे कबीर ने अपनी दीक्षा इन्ही से प्राप्त की थी | कहाँ जाता है कि एक बार रामानन्द जी गंगा स्नान के लिए जा रहे थे तभी अंधेरे में उनका पैर वहाँ लेटे कबीर पर पड़ गया और उनके मुंह से राम-राम निकल गया बस इसी को कबीर ने गुरु-दीक्षा मान लिया और आजीवन राम नाम का जाप करते रहे |
कबीर दास की रचनाये/kabir das ki rachnaye:-
ऐसे तो कबीर पढ़े लिखे नही थे वह बस दोहे सुनाते थे उनको किताबों पर उनके शिष्य उकेरते थे | कबीर की रचनाओं का संकलन "बीजक" नाम से किया गया है, इसके तीन भाग है-
(1) साखी
(2) सबद
(3) रमैनी |
'साखी' दोहा छन्द्र में लिखी गई है तथा कबीर की शिक्षाओं एवं सिद्धान्तों का विवेचन इसमें हुआ है |
'सबद' कबीरदास के पदो को ही 'सबद' कहा गया है। ये गेय पद हैं और इनमें संगीतात्मकता विद्यमान है |
'रमैनी' इसमे कबीर की चौपाईयाँ है |
कबीर दास की मृत्यु:-
कबीर दास की मृत्यु 1518 ई. को मगहर में हुई |चुँकि कबीर के हिंदू और मुसलमान होने मे मतभेद थे इसलिए उनके अनुयायी हिन्दू और मुसलमान दोनों ही धर्मों में थे कहा जाता है कि जब कबीर दास की मृत्यु हुई तब उनके अंतिम संस्कार पर भी विवाद हो गया था | उनके मुस्लिम अनुयायी चाहते थे कि उनका अंतिम संस्कार मुस्लिम रीति-रिवाज से हो और उनके शव को दफ़नाया जाये वही हिन्दू धर्म के लोग हिन्दू रीति रिवाजो से उनका अंतिम संस्कार करना चाहते थे तभी इसी विवाद के बीच उनके शव से चादर उड़ गयी और उनके शरीर के पास कुछ फ़ूल पड़े मिले जिन्हें हिन्दू-मुसलमानों के बीच आधा-आधा बाँट लिया गया | फ़िर हिन्दू और मुसलमानों दोनों ने अपने अपने तरीकों से उन फूलों का अंतिम संस्कार किया | कबीर दास के मृत्यु स्थान पर उनकी समाधी भी बनाई गयी हैं |
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