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हम सभी भारतीय आधुनिकता की चादर ओढ़े भारतीय संस्कृति भारतीय परम्पराओं/ त्योहारो को भुलते जा रहे है और पाश्चात्य संस्कृति में खोते चले जा रहे है हम ईसाई नववर्ष तो मनाते है परंतु हमे अपना नववर्ष याद भी नही जो चैत्र (Chaitra) महीने की पहली तारीख यानि चैत्र प्रतिपदा को मनाया जाता है। जो हर बार मार्च के आखिर या फिर अप्रैल महीने में होता है।
इसी को देखते हुए रामधारी सिंह दिनकर जी ने एक कविता "ये नव वर्ष हमे स्वीकार नही" लिखी जो इस लेख मे है आप इसे जरूर पढ़े और शेयर करे|
रामधारी सिंह दिनकर |
ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं
ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी तो ये रीत नहीं
है अपना ये व्यवहार नहीं
धरा ठिठुरती है सर्दी से
आकाश में कोहरा गहरा है
बाग़ बाज़ारों की सरहद पर
सर्द हवा का पहरा है
सूना है प्रकृति का आँगन
कुछ रंग नहीं , उमंग नहीं
हर कोई है घर में दुबका हुआ
नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं
चंद मास अभी इंतज़ार करो
निज मन में तनिक विचार करो
नये साल नया कुछ हो तो सही
क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही
उल्लास मंद है जन -मन का
आयी है अभी बहार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
ये धुंध कुहासा छंटने दो
रातों का राज्य सिमटने दो
प्रकृति का रूप निखरने दो
फागुन का रंग बिखरने दो
प्रकृति दुल्हन का रूप धार
जब स्नेह – सुधा बरसायेगी
शस्य – श्यामला धरती माता
घर -घर खुशहाली लायेगी
तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि
नव वर्ष मनाया जायेगा
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर
जय गान सुनाया जायेगा
युक्ति – प्रमाण से स्वयंसिद्ध
नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध
आर्यों की कीर्ति सदा -सदा
नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
अनमोल विरासत के धनिकों को
चाहिये कोई उधार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं |
~ रामधारी सिंह दिनकर
तो दोस्तों आज के इस लेख में हमने रामधारी सिंह दिनकर जी की कविता ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं को पढ़ा उम्मीद करता हूं आपको मेरा ये लेख जरूर पसन्द आया होगा आप अपनी प्रतिकिया हमे comment के माध्यम से दे तथा इसे share करे अगर आपका कोई सुझाव हैं तो वो भी यहाँ comment मे बताये मैं उसपे अमल करूंगा|🙏